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BANKELAL DIGEST 10

>>  Thursday, 3 May 2012

Format: Printed
Issue No: DGST-0070-H
Language: Hindi
Author: Tarun Kumar Wahi
Penciler: Bedi
Inker: N/A
Colorist: N/A
Pages: 192
बांकेलाल और शैतान जी- 406- कंकड़ बाबा के शाप से छुटकारा पाकर बांकेलाल और विक्रमसिंह पृथ्वी पर तो आ पहुंचे थे किन्तु अभी भी अपने प्यारे विशालगढ़ से कोसों देर थे। विशालगढ़ की खोज करते हुए दोनों बित्तों के क्षेत्र में प्रवेश कर गए। इसका दण्ड घाड़-घाड़ घूसों से उन्हें भुगतना ही पड़ा। अब बांकेलाल तो ठहरा बांकेलाल । भला अपने अपमान का बदला कैसे ना लेता। वो ले भागा हिलू हिलू हीरा जोकि बित्तै बौनों की शक्ति थी। जबकि दूसरी तरफ शैतान जी बितों पर आक्रमण करके हिलू हिलू प्राप्त करने आ रहा हैं। अब बांके का भगवान ही मालिक है । बांकेलाल और चोर तिलिस्मी-421- विशालगढ़ की खोज में भटकते भटकते विक्रम और बांके पहुंच गए एक नगर में जहां आतंक था बांके के हमशक्ल चोर तिलिस्मी का जो अपनी तिलिस्मी शक्तियों की मदद से चुरा लेता था खजाना! बस फिर क्या था फंस गया बेचारा सीधा सादा बांके चोरी के चक्कर में! लेकिन बांके अपने शत्रुओं को एवईं छोड़ दे तो उसे बांके कौन कहे, बांके ने भी ठान ली उल्टा चक्कर चलाने की! तो आखिर क्या हुआ इसका अंजाम! क्या चोर तिलिस्मी पकड़ा जा सका? बांकेलाल और खुजाल राज- 436 - विशालगढ़ की खोज में भटकते भटकते बांके लाल और विक्रम सिंह पड़ गए थे भयानक संकट मे। ऋषि भंगोड़ी ने विक्रम सिंह को दे दिया शाप जिसके कारण विक्रम सिंह के अंगों में विकार उत्पन्न होने लगे। एक अंग आता तो दूसरा गायब हो जाता। ये मुसीबत ही काफी नहीं थी की वो फंसे एक नए चक्कर में। एक खुजली का मारा खुजाल राज। दूसरा कोढ़ का मारा कोढ़पति। अब इनकी भगवान ही भली करें हीहीही। बांकेलाल और चोर खोपड़ी- 442 - विशालगढ़ की खोज में भटकते बांकेलाल और राजा विक्रम सिंह का अंगविकार शाप से अभी पीछा नहीं छूटा था कि संकट बनकर आ गया चड्डी पुर का राजा बनियान, जिनको खोज थी खोपड़ी चोर की बांकेलाल और विक्रम सिंह को ही समझ लिया गया खोपड़ी चोर और उन्हे नाक से पकड़ कर कैद मे डाल दिया गया। बांकेलाल अपमान से जल उठा। किन्तु तभी राजा बनियान की भी हो गई खोपड़ी चोरी! अब विक्रम सिंह या बांकेलाल की खोपड़ी राजा की कटी खोपड़ी के स्थान पर लगाई जानी थी ऋषि भंगेड़ी के शाप से विक्रम सिंह की खोपड़ी तो हो गई गायब। अब बचा बेचारा बांकेलाल। हुण फेर बांके लाल दा की होऊ! चमत्कारी वृक्ष-449- खुराफाती बांकेलाल को मिला एक ऐसा चमत्कारी वृक्ष जिस पर रंग बिरंगे दस्ताने लटक रहे थे, फिर क्या था बांकेलाल ने दो दस्ताने तोड़े और हाथों पर चढ़ा लिए, किन्तु खुराफाती के साथ हो गई खुद खुराफात और उसके दोनों हाथ हो गए गायब! फिर क्या हुआ इस खुराफात का अंजाम? अस्थियुद्ध-468- विशालगढ़ की खोज में भटकते-भटकते बांकेलाल और विक्रमसिंह जा टकराए जादूगर अस्थियुद्ध से जिसने अपने जादुई दंड को उनसे छुआ कर चुरा लिया उनका कंकाल और सामने थी भूखे भेड़ियों का झुंड! अब बिना कंकाल के बांकेलाल और विक्रमसिंह कैसे बचेंगे उनसे?
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